राहु एवं केतु (rahu ketu effects) छाया ग्रह कहे जाते हैं ।सूर्यादि अन्य ग्रहों के समान इन का स्वतंत्र पिंड और भार नहीं है , उनकी तरह ये दिखलाई भी नहीं देते, अपने क्रान्ति वृत पर भ्रमण करता चन्द्रमा जब भचक्र (पृथ्वी के भ्रमण मार्ग ) के उस बिन्दु पर पहुंचता है ।जिसे काट कर वह उत्तर की ओर चला जाता है ।वह बिन्दु राहु कहलाता है ।पाश्चात्य ज्योतिष में इसीलिए इसको ‘‘नॉथ नोड ऑफ द मून’’ कहा जाता है ।यदि सभी ग्रह राहु-केतु के बीच में आ जाते हैं तो ‘काल सर्प योग’ का जन्म होता है ।जिसे विशेष अनिष्ट कारक एवं दुर्भाग्यशाली योग माना गया है ।छाया ग्रह होने के बावजूद भी ज्योतिषों ने फलित में इनसे सदा सर्तक रहने का संकेत दिया है । इस अशुभ ग्रह का रंग बिलकुल काला, वस्त्र काले एवं चित्र-विचित्र, जाति शूद्र, आकार दीर्घ और भयानक, स्वभाव तीक्ष्ण, दृष्टि नीच, गुण अत्यधिक तामस, प्रकृतिवात प्रधान, तथा अवस्था अतिवृद्ध मानी जाती हैं ।
महर्षि पराशर के अनुसार राहु की उच्चराशि वृष है ।कर्क राशि इसकी मूल त्रिकोण राशि एवं कुम्भ तथा कन्या स्वैग्रेही राशि है।मेष, वृश्चिक, कुम्भ, कन्या, वृष तथा कर्क राशि तथा जन्मांग के तीसरे, छठे, दसवें और ग्याहरवें भाव में इसे बलवान माना गया है ।सूर्य, चन्द्र एवं मंगल इसके शत्रु होते हैं , गुरू सम एवं शेष ग्रह मित्र होते हैं ।आद्रास्वाती एवं शतभिषान क्षत्रों का अधिपतिरा हुए क राशि में प्रायः 18 महीने भ्रमण करता है।यह सदा वक्री ही रहता है, अर्थात उल्टा चलता है ।
इसका प्रधान देवता काल व अधि देवता सर्प है ।झूठ, कुतर्क, दुष्ट अथवा नीच जनों का आश्रय, गुप्त और षड़यंत्र कारी कार्य, धोखे-बाजी, विश्वास घात जुआ, अधार्मिकता, चोरी, रिश्वत लेना, भ्रष्टाचार निन्ध्य एवं गुप्त पाप कर्म, दांई ओर से लिखी जाने वाली भाषा जैसे उर्दू, कठोर भाषण, अन्य देश में गमन, विषम स्थान भ्रमण, छत्र, दुर्गा उपासना, राज वैभव, पितामह, आकस्मिक आपत्तियाँ इनका कारक राहु माना गया है ।
निर्बल राहु :
निर्बल राहु के कारण वायु विकार, अपस्समार (मिर्गी), चेचक, कोढ़, हकलाहट, देह ताप, पूराने जटिल रोग, विष विकार, पैरों के रोग, महामारी, सर्पदंश, बालारिष्ट, फौड़े, जेल जाना, स्त्री योग, प्रेत-पिशाच सर्प से भय, शत्रु पीड़ा, ब्राह्यण और क्षत्रिय से विरोध, स्त्री पुत्र पर आपत्ति, संक्रामक एवं कृमिजन्य रोग, आत्महत्या की प्रवृत्ति, बाल रोग आदि पीड़ायें सम्भावित हैं ।
राहु का रत्न गोमेद :
गोमेद (Hessonite Gemstone) एक पारदर्शी रत्न है ।इसके आकर्षक रंग और गुणों के कारण इसे नवरत्नों में स्थान प्राप्त है । गोमेद को राहु रत्न कहा जाता है ।राहु ग्रह से संबंधित समस्त दोष तथा राहु दशा जनित समस्या एवं दुष्प्रभाव गोमेद धारण करने से दूर हो जाते हैं ।राहु ग्रह से पीडित होने पर जातक मानसिक तनाव और क्रोध से घिर जाता है ।उसकी निर्णय लेने की क्षमता क्षीण हो जाती है । राहु के इन्हीं प्रभावों को कम करता है और जीवन से नकारात्मक ऊर्जाओं को खत्म कर देता है । गोमेद धारण करने से आयस्रोत खुलते हैं और मानसिक परेशानियों से निजात मिलती है ।गोमेद रत्न में काल सर्प दोषों को दूर करने की भी क्षमता होती है ।ये काले जादू से भी इसे धारण करने वाले जातक की रक्षा करता है ।
धयानरहे : गोमेद धारण करने से पहले किसी विद्वान्ज्योतिष से कुंडली की विवेचना अति आवश्यक है |
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